पास्का का पाँचवाँ इतवार वर्ष - 1 (A) अंक - 138, 07 मई, 2023
प्रवेश अग्रस्तव : स्तोत्र 98 (97) :1-2
प्रभु के आदर में नया गीत गाओ, क्योंकि उसने महान् कार्य किये हैं। उसने राष्ट्रों के लिए अपना न्याय प्रदर्शित किया है। अल्लेलूया!
पु० प्रिय भाइयो और बहनो, आज पास्का का पाँचवाँ रविवार है। आज के सुसमाचार में येसु अपने शिष्यों को कहते हैं."
'तुम्हारा जी घबराये नहीं। ईश्वर में विश्वास रखो और मुझ में भी विश्वास रखो।” येसु के ये कथन क्या दिखाता ? वे उनके शिष्यों की कितनी चिन्ता करते थे। अतः उनके सभी डर-भय और चिन्ता - फिक्र सभी से मुक्त होने का रहस्य उन्हें बताये और वह था "ईश्वर और प्रभु येसु पर विश्वास रखना "। कई बार हम भी इस दुनिया में दुनियादारी के प्रभाव के कारण बिना मतलब के डर भय और चिन्ता में पड़ घबरा जाते हैं। उनसे बचने और बाहर निकलने का हमें कोई उपाय नहीं सुझता है। हम परेशान और हताश हो जाते हैं। शायद अभी भी हम उसी तरह के मनोभाव से इस मिस्सा बलिदान में भाग ले रहें हैं। येसु हमारे मुक्तिदाता हमसे भी वही कह रहे हैं पिता ईश्वर में और मुझमें विश्वास रखो। अतः आइये पूरा विश्वास और भरोसा के साथ प्रभु के पास आयें। अपने सभी पापों और अविश्वास की वाली बातों को स्वीकार करें और प्रभु से क्षमा माँग कर अपने को इस मिस्सा बलिदान में भाग लेने के लिए अपने को तैयार करें।
महिमागान लिया जाता है।
संगृहीत प्रार्थना
हे सर्वशक्तिमान् सदा-जीवंत ईश्वर, पास्का का वरदान हमारे हृदयों में सदा परिपूर्ण करता रहा। जिन्हें तूने पवित्र बपतिस्मा द्वारा नवजन्म देने की कृपा की है, वे तेरे संरक्षण में प्रचुर मात्रा में फल उत्पन्न करें और अनंत जीवन के आनंद में प्रवेश कर सकें। हमारे प्रभु तेरे पुत्र येसु खीस्त के द्वारा, जो तेरे तथा पवित्र आत्मा के संग एक ईश्वर होकर युगानुयुग जीते और राज्य करते हैं।
पहला पाठ
आज के पाठ में कहा गया है कि रसद के वितरण के लिए प्रेरितों को छोड़ कर दूसरे सात व्यक्ति चुने गए थे, क्योंकि प्रेरितों के लिए यह उचित नहीं था कि वे " भोजन परोसने के लिए ईश्वर का छोड़ दें"। उन को प्रार्थना और वचन की सेवा में लगे रहना चाहिए ।
प्रेरित - चरित 6:1-7
"उन्होंने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण सात व्यक्तियों को चुन लिया । "
उन दिनों जब शिष्यों की संख्या बढ़ती जा रही थी, तो यूनानी - भाषियों ने इब्रानी - भाषियों के विरूद्ध यह शिकायत की कि रसद के दैनिक वितरण में उनकी विधवाओं की उपेक्षा हो रही है। इसलिए बारहों ने शिष्यों की सभा बुला कर कहा, "यह उचित नहीं है कि हम भोजन परोसने के लिए ईश्वर का वचन छोड़ दें। आप लोग अपने बीच में से पवित्र आत्मा से परिपूर्ण सात बुद्धिमान तथा ईमानदार व्यक्तियों को चुन लीजिए। हम उन्हें इस कार्य के लिए नियुक्त करेंगे और हम लोग प्रार्थना तथा वचन की सेवा में लगे रहेंगे"। यह बात सबों को अच्छी लगी। उन्होंने विश्वास तथा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण स्तेफानुस के अतिरिक्त फिलिप्पुस, प्रोखोरूस, निकानोर, तिमोन, परमेनास और यहूदी धर्म में नवदीक्षित अंताकिया निवासी निकोलस को चुन लिया और उन्हें प्रेरितों के सामने उपस्थित किया । प्रार्थना करने के बाद उन पर अपने हाथ रखे। ईश्वर का वचन फैलता गया, येरूसालेम में शिष्यों की संख्या बहुत अधिक बढ़ने लगी और बहुत-से याजकों ने विश्वास की अधीनता स्वीकार की।
प्रभु की वाणी ।
भजन स्तोत्र 33 ( 32 ) : 1,2,4,5,18,19
अथवा : अल्लेलूया |
अनुवाक्य: हे प्रभु! तेरा प्रेम हम पर बना रहे । तुझ पर ही हमारा भरोसा है।
1. हे धर्मियो । प्रभु में आनन्द मनाओ। स्तुतिगान करना भक्तों के लिए उचित है। वीणा बजा कर प्रभु का धन्यवाद करो, सारंगी पर उसका गुणगान करो।
प्रभु का वचन सच्चा है, उसके समस्त कार्य विश्वसनीय है। उसे धार्मिकता तथा न्याय प्रिय है। पृथ्वी उसके प्रेम से भरपूर है।
2. प्रभु की कृपादृष्टि अपने भक्तों पर बनी रहती है, उन पर जो उसके प्रेम से यह आशा करते हैं। कि वह उन्हें मृत्यु से बचायेगा और अकाल के समय उनका पोषण करेगा।
दूसरा पाठ
संत पेत्रुस कलीसिया को एक इमारत के रूप में देखते हैं और विश्वासी इसके जीवन्त पत्थर हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि हमें मसीह से और एक दूसरे से कितनी अच्छी तरह से संयुक्त रहना चाहिए।
संत पत्रुस का पहला पत्र 4:4-9
" आप लोग चुना हुआ वंश और राजकीय याजक-वर्ग हैं।"
प्रभु वह जीवन्त पत्थर हैं, जिसे मनुष्यों ने तो बेकार समझ कर निकाल दिया, किन्तु जो ईश्वर द्वारा चुना हुआ और उसकी दृष्टि में मूल्यवान है। उनके पास आइए और जीवन्त पत्थरों का आध्यात्मिक भवन बन जाइए, इस प्रकार आप पवित्र याजक - वर्ग बन कर ऐसे आध्यात्मिक बलिदान चढ़ा सकेंगे, जो येसु मसीह द्वारा ईश्वर को ग्राह्य होंगे। इसलिए धर्मग्रंथ में यह लिखा है- मैं सियोन में एक चुना हुआ मूल्यवान कोने का पत्थर रख देता हूँ और जो उस पर भरोसा रखता है, उसे निराश नहीं होना पड़ेगा। आप लोगों के लिए, जो विश्वास करते हैं, वह पत्थर मूल्यवान है। जो विश्वास नहीं करते, उनके लिए धर्मग्रंथ यह कहता है - कारीगरों ने जिस पत्थर को बेकार समझकर निकाल दिया था, वही कोने का पत्थर बन गया है, ऐसा पत्थर जिस से वे ठोकर खाते हैं, ऐसी चट्टान जिस पर वे फिसल कर गिर जाते हैं। वे वचन में विश्वास नहीं करना चाहते, इसलिए वे ठोकर खा कर गिर जाते हैं। यही उनका भाग्य है परन्तु आप लोग चुना हुआ वंश, राजकीय याजक-वर्ग, पवित्र राष्ट्र तथा ईश्वर की निजी प्रजा हैं जिससे आप उसी के महान् कार्यों का बखान करें, जो आप लोगों को अंधकार में से निकाल कर अपनी अलौकिक ज्योति में बुला लाया ।
प्रभु की वाणी ।
जयघोष
अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, " मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से हो कर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता।" अल्लेलूया ! लूकस 14:6"1
सुसमाचार
येसु कहते हैं - " मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से हो कर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता।' इसका अर्थ यह है कि मसीह अनन्त जीवन तक ले जाने वाला सच्चा मार्ग है।
संत योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 14:1-12
" मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ।"
येसु ने शिष्यों से कहा, "तुम्हारा जी घबराये नहीं। ईश्वर में विश्वास रखो और मुझ में भी विश्वास रखो। मेरे पिता के यहाँ बहुत-से निवास-स्थान हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो मैं तुम्हें बता देता; क्योंकि मैं तुम्हारे लिए स्थान का प्रबंध करने जाता हूँ। मैं वहाँ जा कर तुम्हारे लिए स्थान का प्रबंध करने के बाद फिर आऊँगा और तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा, जिससे जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम भी रहो। मैं जहाँ जा रहा हूँ, तुम वहाँ का मार्ग जानते हो । ' थोमस ने उन से कहा, "प्रभु! हम यह भी नहीं जानते कि आप कहाँ जा रहे हैं; तो वहाँ का मार्ग कैसे जान सकते हैं?" येसु ने उस से कहा, "मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से हो कर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता।" "यदि तुम मुझे पहचानते हो, तो मेरे पिता को भी पहचानोगे । अब तो तुम लोगों ने उसे पहचाना भी है और देखा भी है"। फिलिप ने उन से कहा, "प्रभु! हमें पिता के दर्शन कराइए। हमारे लिए इतना ही बहुत है । " येसु ने कहा, "फिलिप ! मैं इतने समय तक तुम लोगों के साथ रहा, फिर भी तुमने मुझे नहीं पहचाना? जिसने मुझे देखा है, उसने पिता को भी देखा है। फिर तुम यह क्या कहते हो- हमें पिता के दर्शन कराइए ? क्या तुम विश्वास नहीं करते कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है? मैं जो शिक्षा देता हूँ, वह मेरी अपनी शिक्षा नहीं है। मुझ में निवास करने वाला पिता मेरे द्वारा अपने महान् कार्य सपंन्न करता है। मेरी इस बात पर विश्वास करो कि मैं पिता में हूँ; नहीं तो उन महान् कार्यों के कारण ही इस पर विश्वास करो। " मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ जो मुझ में विश्वास करता है, वह स्वयं वे ही कार्य करेगा, जिन्हें मैं करता हूँ। वह उन से भी महान् कार्य करेगा क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ।"
प्रभु का सुसमाचार |
पु. मैं स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टिकर्ता
सबः सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर, और उसके इकलौते पुत्र अपने प्रभु येसु ख्रीस्त में विश्वास करता ( करती) हूँ, ('जो पवित्र आत्मा के द्वारा . ... से जन्मा' शब्दों तक एवं अंतर्विष्ट सब लोग नतमस्तक होते हैं। ) जो पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया, कुवाँरी मरियम से जन्मा, पोंतुस पिलातूस के समय दु:ख भोगा, क्रूस पर चढ़ाया गया, मर गया और दफनाया गया; वह अधोलोक में उतरा और तीसरे दिन मृतकों में से फिर जी उठा; वह स्वर्ग में आरोहित हुआ और सर्वशक्तिमान् पिता ईश्वर के दाहिने विराजमान है; वहाँ से वह जीवितों और मृतकों का न्याय करने आएगा। मैं पवित्र आत्मा, पवित्र काथलिक कलीसिया, धर्मियों की सहभागिता, पापों की क्षमा, देह के पुनरूत्थान और अनन्त जीवन में विश्वास करता (करती) हूँ। आमेन।
विश्वासियों के निवेदन
पुः प्रिय भाइयो और बहनों, प्रभु येसु ख्रीस्त हमारे मार्ग, सत्य और जीवन हैं। उसी के द्वारा हम स्वर्गिक पिता के पास सुनिश्चित ढंग से पहुँच सकते हैं। उसी से अनंत सच्चाई को जान सकते हैं और उसी में जीवन की पूर्णता को पा सकते हैं। अतः अपने सभी निवदनों को प्रभु को बताये और कहें
सब: हे पिता हमारी प्रार्थना सुन ।
1.हम संत पापा फ्रांसिस, धर्माध्यक्षों, पुरोहितों और धर्मसंघियों के लिए प्रार्थना करें कि वे प्रभु येसु के मार्ग, सत्य और जीवन वाली बात को गहराई से अनुभव कर पायें और उस अनुभव को सारी जगत को बताकर लोगों को पिता ईश्वर के पास जाने के लिए प्रेरित कर सकें। इसके लिए पिता ईश्वर से प्रार्थना करें।
2. उनके लिए प्रार्थना करें जो खीस्तीय विश्वास में कमजोर हैं। पुर्नजीवित येसु खीस्त का प्रभाव और कृपा उन पर पड़े जिससे वे अपने अल्पविश्वास का एहसास कर पायें और अपने विश्वास में दृढ़ हो सकें। इसके लिए निवेदन करें।
3. बीमार, असहाय और लाचार लोगों के लिए प्रार्थना करें कि पुर्नजीवित ईश्वर का सामर्थ्य का प्रभाव उन पर पड़े जिससे वे चंगे हो सकें और उनकी जो भी समस्यायें और तकलीफें हैं वह दूर हो जाये। इसके लिए प्रार्थना करें।
4.उन दम्पतियों के लिए प्रार्थना करें जिनके बीच लम्बे समय से अनबन और नाराजगी चल रही है। वे अपने वैवाहिक प्रतिज्ञा को याद कर अपने विवाह में ईश्वरीय योजना को पहचान सकें और अपने अहम् और स्वार्थ से उपर उठकर, एक दूसरे को क्षमा कर पायें। इसके लिए प्रार्थना करें।
5. उनके लिए प्रार्थना करें जिनका इस दुनिया में प्रार्थना करने वाला कोई नहीं है। वे अक्सर अपने जीवन के उतार-चढ़ाव से हताश और निराश हो जाते हैं। प्रभु उनका सहारा बनें। वह उनके साथ रहे और हमारे प्रार्थना का फल उनको मिले जिससे उनकी मनोकामनायें पूरी हो सके। इसके लिए निवेदन करें।
पुः हे सर्वशक्तिमान् पिता परमेश्वर, हम सबों को, भिन्नता के बावजूद यहाँ पर पवित्र यूखारिस्त के लिए एक परिवार के रूप में एकत्रित किया है। हम तुझे धन्यवाद देते हैं और प्रार्थना करते हैं कि हम अपने प्रेम, विश्वास और भरोसा में सदा दृढ़ रहें और अपने आचरण से तेरा साक्ष्य दे सकें। हम यह प्रार्थना करते हैं तेरे पुत्र येसु खीस्त के द्वारा |
अर्पण- प्रार्थना
हे ईश्वर, तूने इस बलिदान के अद्भुत आदान-प्रदान द्वारा हम सबको सर्वोच्च ईश्वरत्व का सहभागी बनाया है। ऐसी कृपा कर कि जिस सत्य का ज्ञान हमें प्राप्त हुआ है, हम उसके अनुसार योग्य आचरण भी करें। हमारे प्रभु खौस्त के द्वारा ।
कम्यूनियन - अग्रस्तव योहन 15:15
प्रभु कहते हैं - मैं सच्ची दाखलता हूँ और तुम डालियाँ हो । जो कोई मुझमें रहता है और जिसमें मैं रहता हूँ, वह प्रचुर फल उत्पन्न करता है। अल्लेलूया !
कम्यूनियन के बाद प्रार्थना
हे प्रभु, अपनी प्रजा के बीच उपस्थित रहने की कृपा कर। तूने हमें स्वर्गिक संस्कारों से अनुप्राणित किया है। हमारा मार्गदर्शन कर कि हम पुरानी दासता से मुक्त होकर नये जीवन में प्रवेश कर सकें। यह वर दे, हमारे प्रभु ख्रीस्त के द्वारा ।
चिन्तन
ईश्वर को जानने और उससे जुड़ने का स्वभाव हर इन्सान में है। यही कारण है इन्सान उसे मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, गिरजाघर आदि स्थानों में खोजता है और उसके दर्शन पाने के लिए तरसता है। राजा दाऊद भी इसी भाव को स्तोत्र 63:2 में कहते हैं "ईश्वर ! तू ही मेरा ईश्वर है । मैं तू तुझे ढूँढ़ता रहता हूँ। मेरी आत्मा तेरे लिए प्यासी है। जल के लिए सूखी सन्तप्त भूमि की तरह, मैं तेरे दर्शनों के लिए तरसता हूँ।" हम भी हमारे जीवन्त प्रभु के दर्शन के लिए तरसते हैं और बड़े उतावले होकर इस भावना को तृप्त करना चाहते हैं। इसी संबंध आज के पाठों में इस भावना को शांत करने के कुछ बातें बतायी गयी हैं।
आज का पहला पाठ प्रेरित चरित से पढ़ा गया। प्रारंभिक कलीसिया में उत्पन्न एक समस्या और उसका समाधान का जिक्र इस पाठ के अंश में किया गया है। पुर्नजीवित प्रभु के प्रभाव से खीस्तीय विश्वासियों और शिष्यों की संख्या बढ़ती जा रही थी। येसु के मनोभाव को धारण कर कुछ उदार लोग कुछ दैनिक वितरण के लिए रसद भी जमा कर रहे थे और जरूरतमंदों को उनके जरूरत के आधार पर बाँटी जा रही थी। कुछ लोग प्रेरितों से शिकायत किये कि रसद वितरण में पक्षपात हो रहा है। अतः वे इसमें हस्तक्षेप करें। पाठ से पता चलता है कि इसके संबंध में प्रेरितों की प्राथमिकता बहुत स्पष्ट थी । ईश्वर को पाने, जानने और जुड़ने की जो आत्मिक भूख लोगों में थी उसको तृप्त और पूरा करना उनका पहला काम है। इसलिए इसे वे नहीं छोड़ सकते। ईश्वर से जुड़े रहने के कारण इस समस्या का समाधान के लिए उन्हें ईश्वरीय प्रेरणा मिली और उस प्रेरणा से वे कुछ बद्धिमान और ईमानदार लोगों का चयन किये जो उस काम को कर सके। यह उनके लिए एक बड़ी समस्या थी पर ईश्वर के लिए समर्पित होने और उसकी आत्मा से संचालित होने के कारण कितनी आसानी से इसका समाधान कर पाये। वर्तमान समय में हमारी प्राथमिकता क्या होती है? संसारिक और अध्यात्मिक भूखो की तृप्ति में हम किसको अहमियत देते हैं ? ईश्वर का हम प्रत्यक्ष दर्शन नहीं पा सकते, पर उनके वचनों को सुनकर, उनके लिए समय देकर तथा उनके आदेशों के आधार पर चलने की प्राथमिकता देकर हम उसका अनुभव कर सकते हैं। ईश्वर का अनुभव कर पाना उसके दर्शन से कम नहीं है। कई संत और महापुरूषों ने ऐसा किया और हमारे लिए मिशाल बनें हैं।
आज का दूसरा पाठ संत पेत्रुस के पहले पत्र से पढ़ा गया। इसमें येसु की महानता को पहचान कर उससे जुड़े रहने की बात कही गई है। ऐसा करने से हम उनके लिए एक आध्यात्मिक भवन बन सकते हैं। विधर्मी पीढ़ी ने येसु को नहीं पहचाना, उसके साथ बदतमीजी की और उसे बेकार समझकर उसे बाहर निकाल दिया। इसका परिणाम क्या हुआ? वे ठोकर खा कर गिर गये । उनका विनाश हो गया। क्या हम भी इस दुनिया में उनके समान ठोकर खाकर विनाश के गर्त में सदा के लिए समा जाना चाहते हैं? अगर इसका जवाब नहीं है तो प्रभु येसु को पहचानना होगा। उसमें दृढ़ विश्वास करना होगा। अपने जीवन को उसी पर आधारित करना होगा। भले ही इस दुनिया में हमें इसका फल न मिले पर आगे के जीवन में निश्चित रूप से मिलेगा और हम उस जीवन्त ईश्वर के दर्शन कर पायेंगे जिसके लिए हमारी आत्मा बेताब रहती है। वह क्षण हमारे लिए कितना सुखद होगा ।
आज के सुसमाचार में येसु हमारी बेहरती के लिए आध्यात्मिक जीवन से संबंधित कुछ बातों को बताते हैं। 1. जब हमारे जीवन में विकट परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं और हम घबरा जाते हैं। उस समय हमें ईश्वर पर और येसु ख्रीस्त पर विश्वास करना है। ऐसा क्यों करें? क्योंकि उनके पास हर समस्या का समाधान है। वे ही सब चीज के स्रोत है। जिस प्रकार कार बनाने वाली कम्पनी को कार के हर कल पूर्जे का ज्ञान रहता है और वह हर गड़बड़ी को ठीक कर सकता है, वैसे ही ईश्वर भी हमारे लिए करता है। ईश्वर का हृदय बहुत विशाल है इसलिए उनके पास बहुत बड़ा निवास स्थान है। हर जन को जो उस निवास स्थान में जाना चाहते हैं जगह मिल सकती है। क्या हम वहाँ जाना चाहेंगे? 3. येसु चाहता है कि वे जहाँ रहे वहाँ हम भी रहें। स्वर्गिक पिता के दायें रहना उनका निश्चित है और वह चाहता है कि हम भी वहाँ रहें। इसी बात को बार- बार इस धरती में रहते हुए और अपने विभिन्न शिक्षाओं द्वारा हम मनुष्यों को वे बतायें हैं। 4. येसु मार्ग, सत्य और जीवन हैं और उसी से होकर पिता के पास जाना संभव है। येसु से कटकर या इस दुनिया के चीजों में रम कर हम अनन्त जीवन नहीं पा सकते हैं। 5. जो येसु को जानता और पहचानता है वह ईश्वर को भी जानेगा और पहचानेगा क्योंकि दोनों का स्वभाव एक ही है। पिता ईश्वर में येसु रहते हैं और येसु में स्वर्गिक पिता रहते हैं। इसलिए हम सुसमाचारों में येसु ख्रीस्त के द्वारा किये गये कार्यों को जाने और उस पर विश्वास कर स्वर्गिक पिता के विश्वास में दृढ़ हों। येसु के बतायें शिक्षा और सिद्धांतों पर चल कर स्वर्गित पिता को खुश करने का प्रयास करें और अपने लिए स्वर्ग में स्थान निश्चित करें ।
अतः आइये, अपने जीवन में इन्हीं बातों पर गौर करें और ईश्वरीय प्रेम, भरोसा और विश्वास में दृढ़ हों। इस मिस्सा बलिदान से मिलने वाली कृपा इसमें हमें दृढ़ता प्रदान करें। आमेन ।