राँची महाधर्मप्राँत , रविवारीय पूजन विधि , चालीसा का चौथा रविवार 19 मार्च, 2023 अंक - 128 , वर्ष 1 (A)
प्रवेश- अग्रस्तवः
हे येरूसालेम और उसे प्यार करने वाले लोगो ! आनंद मनाओ। तुम जो विलाप कर रहे थे, आनन्दित हो जाओ और उसकी गोद में बैठकर उसकी महिमा पर गर्व करो। (इसायस 66:10-11 )
पुः प्रिय भाइयो और बहनों, आज हम चालीसे के चौथे रविवार में प्रवेश करते हैं। आज की पूजन विधि हमें ईश्वर की सोच और तौर-तरीके से अवगत होकर उसी के आधार पर अपने जीवन को ढलने पर चिन्तन करने का अवसर देती है। ईश्वर की सोच और मनुष्यों की सोच में अन्तर होती है। नबी इसायस के ग्रन्थ में ईश्वर इसे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं "तुमलोगों के विचार, मेरे विचार नहीं हैं और तुम लोगों के मार्ग, मेरे मार्ग नहीं हैं'(इसा.55:8)। ईश्वर की सोच में हमेशा निस्वार्थ प्रेम, सेवा और लोगों का हित रहती है। उसमें किसी को धोखा देने या उससे अपना काम निकालने का भाव नहीं रहता है। हम चालीसे काल में हैं और यह काल हमें अपने सोच और नियत पर गौर करने के लिए अवसर देती है और इसे ईश्वर की सोच के समान बनाने के लिए निमत्रण देती है। अतः कुछ क्षण मौन रहकर इन बातों पर गौर करते हुए अपने आचरण और बात व्यवहार करने के तरीके का आकलन करें। क्या ये ईश्वर की सोच और उसके तौर तरीके के आधार पर है? अगर है तो ईश्वर को धन्यावाद दें और नहीं है तो प्रभु से क्षमा और कृपा माँगे कि हम ऐसा कर पायें।
महिमागान नहीं लिया जाता है।
संगृहीत प्रार्थना
हे ईश्वर, तू सारी दया तथा समस्त कल्याण का स्रोत है। तूने उपवास, प्रार्थना और भिक्षादान को हमारे पापों की औषधि ठहराया है। हमारी दुर्गति पर दयादृष्टि डाल कि जो लोग दोषी अंत:करण के द्वारा झुके हैं, उन्हें तेरी दया ऊपर उठाये रहे। हम यह प्रार्थना करते हैं, अपने प्रभु तेरे पुत्र येसु ख्रीस्त के द्वारा, जो तेरे तथा पवित्र आत्मा के संग एक ईश्वर होकर युगानुयुग जीते और राज्य करते हैं।
पहला पाठ
दाऊद येस्से का सब से छोटा बेटा था। फिर भी ईश्वर ने उसे यहूदियों का राजा बनने के लिए चुन लिया, क्योंकि ईश्वर मनुष्य की तरह विचार नहीं करता। मनुष्य बाहरी रूप-रंग देखता है, किन्तु प्रभु हृदय देखता है।
समूएल का पहला ग्रंथ - 16:1.6-7, 10-13
" दाऊद को इस्त्राएल के राजा का अभिषेक दिया जाता है । "
प्रभु ने समूएल से कहा, “तुम सींग में तेल भर कर जाओ। मैं तुम्हें बेथलेहेम - निवासी येस्से के यहाँ भेजता हूँ, क्योंकि मैंने उसके पुत्रों में से एक को राजा चुना है। " जब येस्से के पुत्र समूएल के सामने आये, तो समूएल एलिआब को देख कर यह सोचने लगा, कि निश्चय ही यही ईश्वर का अभिषिक्त है । परन्तु ईश्वर ने समूएल से कहा, “उसके रूप-रंग और लम्बे कद का ध्यान न रखो। मैं उसे नहीं चाहता। प्रभु मनुष्य की तरह विचार नहीं करता । मनुष्य तो बाहरी रूप-रंग देखता है, किन्तु प्रभु हृदय देखता है"। जब येस्से अपने सात पुत्रों को समूएल के सामने उपस्थित कर चुका, तो समूएल ने येस्से से कहा, "प्रभु ने उन में से किसी को नहीं चुना "। उसने येस्से से पूछा, 'क्या तुम्हारे पुत्र इतने ही हैं?'' येस्से ने उत्तर दिया, "सब से छोटा यहाँ नहीं है, वह भेड़ें चरा रहा है "। तब समूएल ने येस्से से कहा, “उसे बुला भेजो। जब तक वह न आये, हम भोजन पर नहीं बैठेंगे"। इसलिए येस्से ने उसे बुला भेजा। लड़के का रंग गुलाबी, उसकी आँखें सुन्दर और उसका शरीर सुडौल था। ईश्वर ने समूएल से कहा, "उठो, इसी को अभिषेक दो। यह वही है''। समूएल ने तेल का सींग हाथ में ले लिया और उसके भाइयों के सामने ही उसका अभिषेक किया। ईश्वर का आत्मा दाऊद पर छा गया और उसी दिन से उसके साथ विद्यमान रहा।
प्रभु की वाणी ।
भजन स्तोत्र 22 (23) :
अनुवाक्य: प्रभु मेरा चरवाहा है। मुझे किसी बात की कमी नहीं।
1 . प्रभु मेरा चरवाहा है। मुझे किसी बात की कमी नहीं । वह मुझे हरे मैदानों में चराता है। वह मुझे विश्राम के लिए जल के निकट ले जाता, और मुझ में नवजीवन का संचार करता है।
2. वह अपने नाम का सच्चा है, वह मुझे धर्म-मार्ग पर ले चलता है। चाहे अँधेरी घाटी हो कर जाना ही क्यों न पड़े, मुझे किसी अनिष्ट की आशंका नहीं; क्योंकि तू मेरे साथ रहता है। तेरी लाठी, तेरे डण्डे पर मुझे भरोसा है।
3. तू मेरे शत्रुओं के देखते-देखते, मेरे लिए खाने का मेज़ सजाता है। तू मेरे सिर पर तेल का विलेपन करता है। तू मेरा प्याला लबालब भर देता है।
4. इस प्रकार तेरी भलाई और तेरी कृपा से मैं जीवन भर घिरा रहता हूँ। प्रभु का मंदिर ही मेरा घर है। मैं उस में अनन्तकाल तक निवास करूंगा।
दूसरा पाठ
प्रभु का शिष्य बन जाने से हम अंधकार में से निकल कर ज्योति की संतान बन जाते हैं, इसलिए, हमें भलाई तथा सच्चाई का फल उत्पन्न करना चाहिए।
एफेसियों के नाम संत पौलुस का पत्र 5:8-14
" मृतकों में से जी उठो और मसीह तुम को आलोकित कर देंगे ।
आप लोग पहले ‘अंधकार' थे, अब प्रभु के शिष्य होने के नाते 'ज्योति' बन गये हैं। इसलिए ज्योति की सन्तान की तरह आचरण करें। जहाँ ज्योति है, वहाँ हर प्रकार की भलाई, धार्मिकता तथा सच्चाई उत्पन्न होती है। आप इसका पता लगाते रहें कि कौन सी बातें प्रभु को प्रिय हैं। लोग अंधकार में जो व्यर्थ के काम करते हैं, उन से आप दूर रहें और उनकी बुराई प्रकट करें। जो काम वे गुप्त रूप से करते हैं, उनकी चरचा करने में भी लज्जा आती है। ज्योति इन सब बातों की बुराई प्रकट करती है और इनका वास्तविक रूप स्पष्ट कर देती है। ज्योति जो कुछ आलोकित करती है, वह स्वयं ज्योति बन जाता है। इसलिए कहा गया है - नींद से जागो, मृतकों में से जी उठो और मसीह तुम को आलोकित कर देंगे।
प्रभु की वाणी ।
जयघोष
प्रभु कहते हैं - संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है, उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी। (योहन 8,12)
सुसमाचार
येसु ने कहा, “संसार की ज्योति मैं हूँ। यहाँ वह एक जन्मांध मनुष्य को ज्योति प्रदान करते हैं, ताकि हम इस बात में दृढ़ विश्वास करें कि वह हमारी आत्मा को आध्यात्मिक ज्योति प्रदान कर सकते हैं।
संत योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 9:1-41
'वह मनुष्य गया और नहा कर वहाँ से देखता हुआ लौटा। "
रास्ते में येसु ने एक मनुष्य को देखा, जो जन्म से अंधा था। उनके शिष्यों ने उन से पूछा, "गुरूवर ! किसने पाप किया था, इसने अथवा इसके माँ-बाप ने। जो यह मनुष्य जन्म से अंधा है?" येसु ने उत्तर दिया, "न तो इस मनुष्य ने पाप किया और न इसके माँ-बाप ने। वह इसलिए जन्म से अंधा है, कि इस चंगा करने से ईश्वर का सामर्थ्य प्रकट हो जाए। जिसने मुझे भेजा है, हमें उसका कार्य दिन बीतने से पहले ही पूरा कर देना है। रात आ रही है, जब कोई भी काम नहीं कर सकता। मैं जब तक संसार में हूँ, तब तक संसार की ज्योति हूँ"। उन्होंने भूमि पर थूका, थूक से मिट्टी सानी और वह मिट्टी अंधे की आँखों पर लगा कर उस से कहा, “जाओ, सिलोआम के कुंड में नहा लो " । सिलोआम का अर्थ है 'प्रेषित'। वह मनुष्य गया और नहा कर वहाँ से देखता हुआ लौटा। उसके पड़ोसी और वे लोग, जो उसे पहले भीख माँगते देखा करते थे, बोले, "क्या यह वही नहीं है, जो बैठे हुए भीख माँगा करता था?" कुछ लोगों ने कहा, "हाँ, यह वही है । " कुछ ने कहा, "नहीं, यह उस जैसा और होगा "। उसी ने कहा, "मैं वही हूँ"। इस पर लोगों ने उस से पूछा, “तो, तुम कैसे देखने लगे?" उसने उत्तर दिया, "जो मनुष्य येसु कहलाते हैं, उन्होंने मिट्टी सानी और उसे मेरी आँखों पर लगा कर कहा सिलोआम जाओ और नहा लो। मैं गया और नहाने के बाद देखने लगा "। उन्होंने उस से पूछा, " वह कहाँ है?" और उसने उत्तर दिया, "मैं नहीं जानता " । लोग उस मनुष्य को, जो पहले अंधा था, फरीसियों के पास ले गये। जिस दिन येसु ने मिट्टी सन कर उसकी आँखें अच्छी की थीं, वह विश्राम का दिन था। फरीसियों ने भी उस से पूछा कि वह कैसे देखने लगा। उसने उन से कहा, "उन्होंने मेरी आँखों पर मिट्टी लगा दी और मैं नहाने के बाद देखने लगा''। इस पर कुछ फरीसियों ने कहा, " वह मनुष्य ईश्वर के यहाँ से नहीं आया है; क्योंकि वह विश्राम - दिवस के नियम का पालन नहीं करता'"। कुछ लोगों ने कहा, "पापी मनुष्य ऐसे चमत्कार कैसे दिखा सकता है?" इस तरह उन में मदभेद हो गया। उन्होंने फिर अंधे से पूछा, "जिस मनुष्य ने तुम्हारी आँखें अच्छी कर दी हैं, उसके विषय में तुम क्या कहते हो?" उसने उत्तर दिया ‘“वह नबी हैं" । यहूदियों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह अंधा था और अब देखने लगा है। इसलिए उन्होंने उसके माता-पिता को बुला भेजा और पूछा, 'क्या यह तुम्हारा बेटा है, जिसके विषय में तुम यह कहते हो कि यह जन्म से अंधा था? तो फिर यह कैसे देखने लगा है?" उसके माता-पिता ने उत्तर दिया, "हम जानते हैं कि वह हमारा बेटा है और यह जन्म से अंधा था; किन्तु हम यह नहीं जानते कि यह अब कैसे देखने लगा है। हम यह भी नहीं जानते कि किसने इसकी आँखें अच्दी की है। यह सयाना है, इसी से पूछ लीजिए। यह अपनी बात आप ही बोलेगा "। उसके माता-पिता ने यह इसलिए कहा कि वे यहूदियों से डरते थे। यहूदी यह निर्णय का चुके थे कि यदि कोई येसु को मसीह मानेगा, तो वह सभागृह से बहिष्कृत कर दिया जायेगा। इसलिए उसके माता - पिता ने कहा- यह सयाना है, इसी से पूछ लीजिए। उन्होंने उस मनुष्य को, जो पहले अंधा था, फिर बुला भेजा और उसे शपथ दिला कर कहा, "हम जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है"। उसने उत्तर दिया, "वह पापी है या नहीं, इसके बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता। मैं यही जानता हूँ कि मैं अंधा था और अब देखने लगा हूँ" । इस पर उन्होंने उस से फिर पूछा, “उसने तुम्हारे साथ क्या किया? उसने तुम्हारी आँखें कैसे अच्छी की?" उसने उत्तर दिया, "मैं आप लोगों को बता चुका हूँ, लेकिन आपने उस पर ध्यान नहीं दिया। अब फिर क्यों सुनना चाहते हैं? क्या आप लोग भी उनके शिष्य बनना चाहते हैं?'' वे उसे बुरा-भला कहने लगे और बोले, " तू ही उसका शिष्य बन जा। हम तो मूसा के शिष्य हैं। हम जानते हैं कि ईश्वर ने मूसा से बात की है, किन्तु उस मनुष्य के विषय में हम नहीं जानते कि वह कहाँ का है"। उसने उत्तर दिया, “यही तो आश्चर्य की बात है। उन्होंने मुझे आँखें दी हैं और आप लोग यह भी नहीं जानते कि वह कहाँ के हैं। हम जानते हैं कि ईश्वर पापियों की नहीं सुनता। वह उन लोगों की सुनता है, जो भक्त हैं और उसकी इच्छा पूरी करते हैं। यह कभी सुनने में नहीं आया कि किसी ने जन्मांध को आँखें दी हैं । यदि वह मनुष्य यहाँ से नहीं आया होता, तो वह कुछ भी नहीं कर सकता"। उन्होंने उस से कहा, “तू तो बिलकुल पाप में ही जन्मा है, तू हमें सिखलाने चला है।" और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया । येसु ने सुना कि फरीसियों ने उसे बाहर निकाल दिया है; इसलिए मिलने पर उन्होंने उस से कहा, "क्या तुम मानव पुत्र में विश्वास करते हो?" उसने उत्तर दिया, “महोदय! मुझे बता दीजिए कि वह कौन है, जिससे मैं उस में विश्वास कर सकूँ। येसु ने उस से कहा, " तुमने उसे देखा है; वह तो तुस से बातें कर रहा है"। उसने उन्हें दंडवत् करते हुए कहा, "प्रभु! मैं विश्वास करता हूँ" । येसु ने कहा, "मैं लोगों के पृथक्करण का निमित बन कर संसार में आया हूँ; जिससे जो अंधे हैं, वे देखने लगें और जो देखते हैं, वे अंधे बन जायें"। जो फरीसी उनके साथ थे, वे यह सुन कर बोले, " क्या हम भी अंधे हैं"? येसु ने उन से कहा, "यदि तुम लोग अंधे होते, तो तुम्हें पाप नहीं लगता; परन्तु तुम ही कहते हो कि हम देखते हैं, इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है''।
प्रभु का सुसमाचार ।
धर्मसार
पु० मैं स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टिकर्ता
सबः सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर, और उसके इकलौते पुत्र अपने प्रभु येसु ख्रीस्त में विश्वास करता ( करती) हूँ, ('जो पवित्र आत्मा के द्वारा ....से जन्मा' शब्दों तक एवं अंतर्विष्ट सब लोग नतमस्तक होते हैं।) जो पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया, कुँवारी मरियम से जन्मा, पोतुस पिलातुस के समय दुःख भोगा, क्रूस पर चढ़ाया गया, मर गया और दफनाया गया; वह अधोलोक में उतरा, और तीसरे दिन मृतकों में से फिर जी उठा; वह स्वर्ग में आरोहित हुआ और सर्वशक्तिमान् पिता ईश्वर के दाहिने विराजमान है; वहाँ से वह जीवितों और मृतकों का न्याय करने आएगा। मैं पवित्र आत्मा, पवित्र काथलिक कलीसिया, धर्मियों की सहभागिता, पापों की क्षमा, देह का पुनरूत्थान और अनंत जीवन में विश्वास करता (करती ) हूँ। आमेन ।
विश्वासियों के निवेदन
पुः प्रिय भाइयो और बहनों, हम चलीसे काल में है और यह हमें अपने आचरण और बात व्यवहार को ईश्वर के स्वभाव के आधार पर बनाने के लिए हर जन को निमत्रण देता है। अतः ऐसा कर पाने के लिए जो भी आवश्यक कृपायें चाहिये उसे प्रभु को बतायें और कहें-
सब: हे पिता हमारी प्रार्थना सुन ।
1. संत पापा फ्रांसिस, धर्माध्यक्षों, पुरोहितों और धर्मसंघियों के लिए प्रार्थना करें कि वे अपने में निस्वार्थ प्रेम, सेवा, समर्पण जैसे ईश्वरीय स्वभाव को धारण कर पायें और हर लोगों को अपने उपस्थिति से सच्ची आनन्द, खुशी और शांति दे सकें। इसके लिए प्रार्थना करें।
2. पूरे मानव जाति के लिए प्रार्थना करें कि वे अपने अवगुणों और कमजोरियों को पहचान पायें और उसे छोड़ कर एक अच्छा और सच्चा इंसान बन सकें और अपने अच्छे आचरण द्वारा दूसरों की सेवा कर पायें। इसके लिए निवेदन करें।
3. हम सभी ख्रीस्तीय विश्वासियों के लिए प्रार्थना करें कि उनका सोच-विचार ईश्वर के सोच विचार के आधार पर हो। वे पाप बुराई को पहचान कर उन्हें छोड़ पायें और अपने विश्वास में दृढ़ हो सकें। इसके लिए प्रार्थना करें।
4. हम गरीब, लाचार और दुःख - तकलीफ में पड़े लोगों के लिए प्रार्थना करें कि वे इस कष्टपूर्ण स्थिति में भी भगवान को न भूलें। वे धीरज और धैर्य बनाये रखें और ईश्वर उनके तकलीफों को अन्य उदार और भले लोगों के माध्यम दूर करे। इसके लिए प्रार्थना करें।
5. भारत देश के उन सभी राजनीतिक नेताओं और अधिकारियों के लिए प्रार्थना करें, जो सच्चे और अच्छे हैं। ईश्वर उनके अच्छे कामों और विचारों में आशिष दे और उनके कामों में जो भी दिक्कते और बाधायें हैं उन्हें दूर करे। इसके लिए निवेदन करें।
पुः हे सर्वशक्तिमान पिता परमेश्वर, तू महान है और तेरी महानता तेर वचनों द्वारा हमारे लिए प्रगट होती है। वे हमें तेरे समान ही महान बनने के लिए प्रेरित करती है। इसी से प्रेरित होकर हम ये दीन प्रार्थनायें तुझे चढ़ाते हैं, तेरे पुत्र येसु खीस्त के द्वारा। आमेन।
अर्पण-प्रार्थना
हे प्रभु, हम हर्षित मन से ये दान तेरे सम्मुख लाते हैं। ये अनंत जीवन के लिए हमारी औषधि हैं। ऐसी कृपा कर कि हम श्रद्धापूर्वक इनका आदर करें और समस्त संसार की मुक्ति के लिए इन्हें अर्पित करें। हमारे प्रभु ख्रीस्त के द्वारा।
कम्यूनियन- अग्रस्तव
प्रभु ने मेरी आँखों पर मिट्टी मली: मैं गया और नहाया और मैंने दृष्टि प्राप्त कर विश्वास किया। (योहन 9:11)
कम्यूनियन के बाद प्रार्थना
हे प्रभु, तू इस संसार में आने वाले प्रत्येक मनुष्य को ज्योति प्रदान करता है। अपनी कृपा के आलोक से हमारा हृदय ज्योतिर्मय कर दे कि हमारे विचार सदा तेरे योग्य हों और हम सच्चे हृदय से तुझे प्यार करें। हम यह प्रार्थना करते हैं, अपने प्रभु ख्रीस्त के द्वारा ।
चिन्तन
प्रारंभ में जब ईश्वर ने इस दुनिया को बनाया तब सब कुछ बहुत अच्छा था और उसे देखकर ईश्वर को भी बहुत अच्छा लगा था। पर बाद में पाप के समावेश से दुनिया दुषित हो गई। मनुष्य का स्वभाव और सोच में परिवर्तन आ गया। उनका मानना और चलना दुनियायी हो गया। यही वजह है कि आज अधिकतर लोगों की सोच, ईश्वर की सोच के आनुसार नहीं होती है। ईश्वर की सोच और तौर तरीके के आधार पर चलना और उसे मानना मनुष्य को अजीब लगता है। आज के पाठ इसी सच्चाई को हमारे समक्ष रखते हैं और हमारे स्वभाव को ईश्वर के सोच और तरीके के समान बनाने के लिए चुनौती देते हैं।
आज का पहला पाठ समूएल का पहला ग्रन्थ से पढ़ा गया। इसमें इस्राएल के राजा के रूप में राजा दाऊद के चुनाव और अभिषेक की बात कही गई है। ईश्वर नबी को बेतलेहेम निवासी यिशय के यहाँ भेजता है और वहाँ हम नबी समुएल में मनुष्य की सोच और नजरिया को पाते हैं। वहाँ पर ईश्वर स्पष्ट रूप से अपने सोच के बारे में बताते हुए कहते हैं कि वह मुनष्यों की तरह विचार नहीं करता है। मुनष्य तो केवल बाहरी रंग-रूप देखता है पर ईश्वर हृदय देखता है। इसमें कितनी बड़ी सच्चाई और हम मनुष्यों के आकलन करने के तरीके को बताया गया है। कितनी असानी से हम दुनियायी नजरिये से संचालित होते हैं और वही हमें सबसे अच्छा और सही लगता है। पर क्या हम ईश्वर की सोच और तरीके को जानते और परवाह करके उसकी अहमियत देते हैं ?
आज का दूसरा पाठ एफेसियों के नाम संत पौलुस के पत्र से पढ़ा गया। इसमें बपतिस्मा के द्वारा मिले अध्यात्मिक प्रभाव को बताया गया है और येसु ख्रीस्त के द्वारा मिले हमारी पहचान को याद दिलाया जा रहा है ताकि हम अपने आचरण में और बात - व्यवहार के समय उसका ख्याल रख सके। हम हर जन बपतिस्मा के द्वारा ज्योति की संतान बन गये हैं। इसलिए हमारा आचरण ज्योति की संतान की तरह हो, जहाँ ईश्वर की नजरिया और तौर-तरीके की प्राथमिकता होती है। भलाई, धार्मिकता और सच्चाई का बोलबाला रहता है। पाप, बुराई और अन्धकार का कोई जगह नहीं होता है। क्या हम ज्योति की संतान की तरह अपना जीवन जी सकते हैं?
आज के सुसमाचार में येसु जन्म से अन्धे एक व्यक्ति को अद्भूत तरीके से नाटकीय अंदाज में दृष्टिदान देते हैं। इस घटना में भी हम मनुष्यों की सोच और ईश्वर की सोच और नजरिया में अन्तर पा सकते हैं। शिष्य येसु से पूछते हैं कि किसके पाप के कारण वह व्यक्ति अन्धा पैदा हुआ ? कई बार हम चीज वस्तुओं और घटनाओं को अपने नजरिया से आकलन करते हैं और कुछ अनहोनी घटना को पाप का परिणाम बताते हैं या यह जताने के प्रयास करते हैं कि यह ईश्वर का दण्ड है। अगर ऐसी बात है तो येसु ख्रीस्त कौन सा पाप किया था जिससे पिता ईश्वर उसको दण्डित किया और वह दुःख भोगा और भयानक कष्ट सहकर क्रूस पर मर गया? आज के सुसमाचार में येसु इस बात को स्पष्ट करते हैं कि वह अन्धा व्यक्ति किसी के पाप के कारण अन्धा नहीं था बल्कि ईश्वर की सामर्थ्य और महिमा को प्रकट करने के लिए वह अन्धा पैदा हुआ था । सुसमाचार में आगे फरीसियों की सोच पर गौर कीजिये। वे येसु से नाराज थे और वे उस पर यह दोष लगाते थे कि वह विश्राम का दिन को नहीं मानता। ऐसा करने वाला ईश्वर के यहाँ से नहीं आ सकता या उसका बेटा नहीं हो सकता। इस तरह से दुनियायी सोच के कारण अन्य लोगों को वे गुमराह किये।
आज हम भी शायद दुनियायी या मानवीय सोच के कारण अपने सकीर्ण विचारधारा में पड़े हुए होंगे। हम दुसरों को माफ करने के बदले, उनके गलतियों का ढिंढोरा पीटकर और उन्हें अपमानित कर बहादूरी महसूस करते होंगे। बेइमानी से कमाकर जीवन के क्षणिक आनन्द में डूबे रहते होंगे। दिखावा और ढोंगी जीवन जी कर और लोगों की वाहवाही पाकर खूब आनन्दित होते होगें। इस तरह कई हमारे आचरण हो सकते हैं जो दुनियायी आचरण है जो ईश्वर की सोच और तरीके से भिन्न है। इससे हमें कोई लाभ नहीं होने वाला है और यह चलीसे का समय इन्हीं बातों पर गौर कर अपने मानवीय या दुनियायी सोच को बदल कर ईश्वरीय सोच को जगह देने की चुनौती देती है। आज हम कैसे ईश्वरीय सोच को जान सकते हैं? इसका जवाब हमें बाईबल पढ़ने से मिल सकता है। बाईबल द्वारा ईश्वर हमसे बातें करता है। ईश्वर अपने को येसु द्वारा हमारे लिए प्रकट किया। अतः येसु ख्रीस्त के जीवन और कार्यों पर चिन्तन कर हम ईश्वरीय सोच और तरीके को जान सकते हैं।
ईश्वर हमें हमारी सोच को नहीं बल्कि अपनी सोच को अपनाने में मदद करे। आमेन।