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SUNDAY LITURGY IN HINDI

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रविवारीय पूजन विधि 

चालीसा का तीसरा रविवार - 12 मार्च 2023 - अंक 126

प्रवेश- अग्रस्तव:

मेरी आँखें सदा प्रभु पर लगी हुई हैं, क्योंकि वह मेरे पैरों को फंदे से छुड़ाता है। हे ईश्वर मेरी ओर दृष्टि फेर, मुझ पर दया कर, क्योंकि मैं अकेला और दुःखी हूँ। (स्तोत्र 25 (24) 23-26)

पु॰ प्रिय भाइयो और बहनों, आज हम चालीसे के तीसरे रविवार में प्रवेश करते हैं। आज की पूजन विधि हमें अपने जीवन में ईश्वर के वरदान को पहचानने, ईश्वर को जानने और जीवन को नया बनाकर ईश्वर के लिए ही जीने का निमंत्रण देती है। आज के सुसमाचार में येसु समारी स्त्री से कहते हैं " यदि तुम ईश्वर के वरदान को पहचानती और यह जानती कि वह कौन है तो तुम उससे माँगती और वह तुम्हें संजीवन जल देता। " ईश्वर सब चीज का स्रोत है। जो उन्हें जानते और उनसे जुड़ते, वह उनसे सच्ची आनन्द, खुशी और शांति पाते हैं। पर कई लोग, ईश्वर से दूर रहने, उसकी आवश्यकता महसूस नहीं करने और पापमय जीवन जीने द्वारा जीवन की असली आनन्द पाने से वंचित रह जाते हैं। हमारी क्या स्थिति है ? क्या हम ईश्वर को जानते और उससे जुड़ने का प्रयास करते हैं? क्या हमें लगता है कि वह सब चीज का स्रोत है और सब कुछ कर सकता है? नम्रतापूर्वक अपनी नदानी और अविश्वास को स्वीकार करें और प्रभु से क्षमा माँगे । महिमागान नहीं लिया जाता है।

संगृहीत प्रार्थना

हे ईश्वर, तू सारी दया तथा समस्त कल्याण का स्रोत है। तूने उपवास, प्रार्थना और भिक्षादान को हमारे पापों की औषधि ठहराया है। हमारी दुर्गति पर दयादृष्टि डाल कि जो लोग दोषी अंत:करण के द्वारा झुके हैं, उन्हें तेरी दया ऊपर उठाये रहे। हम यह प्रार्थना करते हैं, अपने प्रभु तेरे पुत्र येसु ख्रीस्त के द्वारा, जो तेरे तथा पवित्र आत्मा के संग एक ईश्वर होकर युगानुयुग जीते और राज्य करते हैं।

पहला पाठ

मिस्र देश से निकलने पर यहूदियों को प्रतिज्ञात देश अर्थात् फिलिस्तीन की ओर बढ़ते हुए मरूभूमि हो कर जाना पड़ा। जब पानी नहीं मिला, तो ईश्वर ने मूसा से कहा कि वह चट्टान पर डंडे से प्रहार करे । चट्टान पर प्रहार करने से उस से पानी फूट निकला। कलीसिया ने उस चट्टान को मसीह का प्रतीक समझा, जिनके द्वारा बपतिस्मा में हमें संजीवन जल मिलता है।

निर्गमन-ग्रंथ  17:3-7 - " हमें पीने के लिए पानी दीजिए। "

लोगों को वहाँ बड़ी प्यास लगी और वे यह कह कर मूसा के विरूद्ध भुनभुना रहे थे, "क्या आप हमें इसलिए मिस्र से निकाल लाये कि हम अपने बाल-बच्चों और बैल - गायों के साथ प्यास से मर जायें?" मूसा ने प्रभु की दुहाई दे कर कहा, "मैं इन लोगों का क्या करूँ ? ये मुझे पत्थरों से मार डालने पर उतारू हैं"। प्रभु ने मूसा को यह उत्तर दिया, "इस्राएल के कुछ नेताओं के साथ-साथ लोगों के आगे-आगे चलो। अपने हाथ में वह डंडा ले लो जिसे तुमने नील नदी पर मारा था और आगे बढ़ते जाओ। मैं वहाँ होरेब की एक चट्टान पर तुम्हारे सामने खड़ा रहूँगा। तुम उस चट्टान पर डंडे से प्रहार करो। उस से पानी फूट निकलेगा और लोगों को पीने को मिलेगा "। मूसा ने इस्राएल के नेताओं के सामने ऐसा ही किया। उसने उस स्थान का नाम 'मस्सा' और 'मरीबा' रखा, क्योंकि इस्रालिएयों ने उसके साथ विवाद किया था और यह कह कर ईश्वर को चुनौती दी थी, "ईश्वर हमारे साथ है या नहीं ?"

प्रभु की वाणी ।

भजन स्तोत्र 95 (94) : 1 - 2,6-9 / अनुवाक्य: आज अपना हृदय कठोर न बनाओ और ईश्वर की वाणी सुनो।

1. आओ! हम प्रभु के सामने आनन्द मनाये, अपने शक्तिशाली त्राणकर्त्ता का गुणगान करें। हम स्तुति करते हुए उसके पास जायें, भजन गाते हुए उसे धन्य कहें।

2. आओ! हम दंडवत् कर प्रभु की आराधना करें। अपने सृष्टिकर्त्ता के सामने घुटने टेंके। वही तो हमारा ईश्वर है और हम हैं उसके चरागाह की प्रजा, उसकी अपनी भेंडें ।

3. ओह! यदि तुम आज उसकी यह वाणी सुनो, " अपना हृदय कठोर न बनाओ, जैसा कि पहले मरीबा और मस्सा की मरूभूमि में हुआ था। उस दिन तुम्हारे पूर्वजों ने मेरी परीक्षा ली। मेरे कार्यों को देखते हुए भी, उन्होंने मुझ में विश्वास नहीं किया" ।

दूसरा पाठ

मसीह के द्वारा हमें ईश्वर की कृपा प्राप्त हो गयी है। मसीह ने हमारे लिए प्रायश्चित्त किया और हमारे लिए अनंत जीवन का द्वार खोल दिया। 

रोमियों के नाम संत पौलुस का दूसरा पत्र  5:1-2,5-8

"ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा को प्रदान किया है; उसी के द्वारा ईश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उमड़ पड़ा है। " ईश्वर ने हमारे विश्वास के कारण हमें धार्मिक माना है। हम अपने प्रभु येसु मसीह के द्वारा ईश्वर से मेल बनाये रखें। मसीह ने हमारे लिए उस अनुग्रह का द्वार खोला है, जो हमें प्राप्त हो गया है। हम इस बात पर गौरव करें कि हमें ईश्वर की महिमा के भागी बनने की आशा है। यह आशा व्यर्थ नहीं होगी, क्योंकि ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा को प्रदान किया है और उसी के द्वारा ईश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उमड़ पड़ा है। हम निस्सहाय ही थे, जब मसीह निर्धारित समय पर विधर्मियों के लिए मर गये। धार्मिक मनुष्य के लिए शायद ही कोई अपने प्राण अर्पित करे। फिर भी हो सकता है कि भले मनुष्य के लिए कोई मरने को तैयार हो जाये, किन्तु हम पापी ही थे जब मसीह हमारे लिए मर गये थे; इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है।

प्रभु की वाणी ।

जयघोष

हे प्रभु! आप संसार के मुक्तिदाता हैं। मुझे वह संजीवन जल दीजिए, जिससे फिर कभी प्यास न लगे ।

सुसमाचार

मरूभूमि में इस्राएलियों को ईश्वर की ओर से साधारण पानी मिला था। येसु समारी स्त्री को बताते कि वह संजीवन जल प्रदान करते हैं। वह स्त्री विश्वास करती है और अपने गाँव वालों को भी मसीह में विश्वास करने के लिए प्रेरित करती है।

संत योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 4: 5-42 / " एक जलस्रोत जो अनंत जीवन के लिए उमड़ता रहता है। "

येसु समारिया के सिकार नामक नगर पहुँचे। वह उस भूमि के निकट था, जिसे याकूब ने अपने पुत्र यूसुफ को दिया था। वहाँ याकूब का झरना था। येसु यात्रा से थक गये थे, इसलिए वह झरने के पास बैठ गये। उस समय दोपहर हो चला था। एक समारी स्त्री पानी खींचने आयी। येसु ने उस से कहा, "मुझे पानी पिला दो, " क्योंकि उनके शिष्य नगर में भोजन खरीदने गये थे। यहूदी लोग समारियों से कोई संबंध नहीं रखत। इसलिए समारी स्त्री ने उन से कहा, 'आप यहूदी हो कर भी मुझ समारी से पीने के लिए पानी माँगते हैं?' येसु ने उत्तर दिया, 'यदि तुम ईश्वर का वरदान पहचानती और यह जानती कि वह कौन है जो तुम से कहता है मुझे पानी पिला दो, तो तुम उस से माँगती और वह तुम्हें संजीवन जल देता'। स्त्री ने उस से कहा, 'महोदय ! पानी खींचने के लिए आपके पास कुछ भी नहीं है और कूआँ गहरा है; तो आप का वह संजीवन जल कहाँ मिलेगा ? क्या आप हमारे पिता याकूब से भी महान् हैं? उन्होंने हमें यह कूआँ दिया है। वह स्वयं, उनके पुत्र और उनके पशु भी उस में से पानी पीते थे'। येसु ने कहा, 'जो कोई यह पानी पीता है, उसे फिर प्यास लगेगी; किन्तु जो मेरा दिया हुआ जल पीता है, उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगी। जो जल मैं उसे प्रदान करूँगा, वह उस में वह स्रोत बन जायेगा जो अनंत जीवन के लिए उमड़ता रहता है'। इस पर स्त्री ने कहा, 'महोदय! मुझे वह जल दीजिए, जिससे मुझे फिर प्यास न लगे और मुझे यहाँ पानी खींचने नहीं आना पड़े।

येसु ने उस से कहा, 'जा कर अपने पति को बुला लाओ'। स्त्री ने उत्तर दिया, 'मेरा कोई पति नहीं है'। येसु ने उस से कहा, 'तुमने ठीक ही कहा कि मेरा कोई पति नहीं है। तुम्हारे पाँच पति रह चुके हैं और जिसके साथ अभी रहती हो, वह तुम्हारा पति नहीं है। यह तो तुमने ठीक ही कहा है'। स्त्री ने उन से कहा, "महोदय ! मैं समझ गयी, आप नबी हैं। हमारे पुरखे इस पहाड़ पर आराधना करते थे और आप लोग कहते हैं कि येरूसालेम में आराधना करनी चाहिए"। येसु ने उस से कहा, "नारी ! मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह समय आ रहा है, जब तुम लोग न तो इस पहाड़ पर और न येरूसालेम में ही पिता की आराधना करोगे। तुम लोग जिसकी आराधना करते हो, उसे नहीं जानते। हम लोग जिसकी आराधना करते हैं, उसे जानते हैं क्योंकि मुक्ति यहूदियों से ही प्रारंभ होती है। परन्तु वह समय आ रहा है, आ ही गया है, जब सच्चे आराधक आत्मा और सच्चाई से पिता की आराधना करेंगे। पिता ऐसे ही आराधकों को चाहता है। ईश्वर आत्मा है। उसके आराधकों को चाहिए कि वे आत्मा और सच्चाई से उसकी आरधना करें" । स्त्री ने कहा, "मैं जानती हूँ कि मसीह, जो खीस्त कहलाते हैं, आने वाले हैं, जब वह आयेंगे, तो हमें सब कुछ बता देंगे"। येसु ने उस से कहा, "मैं, जो तुम से बोल रहा हूँ, वही हूँ" । उसी समय शिष्य आ गये और उन्हें एक स्त्री के साथ बातें करते देख अचम्भे में पड़ गये, फिर भी किसी ने यह नहीं कहा, 'इस से आप को क्या?' अथवा, 'आप इस से क्यों बातचीत करते है? उस स्त्री ने अपना घड़ा वहीं छोड़ दिया और नगर में जा कर लोगों से कहा 'चलिए एक मनुष्य को देख लीजिए जिसने मुझे वह सब, जो मैंने किया है, बता दिया है। कहीं वह मसीह तो नहीं हैं?' इसलिए वे लोग येसु से मिलने के लिए नगर से निकले। इसी बीच उनके शिष्य उन से यह कह कर अनुरोध करते रहे, 'गुरूवर ! खा लीजिए!' उन्होंने उन से कहा, 'खाने के लिए मेरे पास वह भोजन है, जिसके विषय में तुम लोग कुछ नहीं जानते'। इस पर शिष्य आपस में कहने लगे, 'क्या कोई उनके लिए खाने को कुछ ले आया है?' इस पर येसु ने उन से कहा, "जिसने मुझे भेजा है, उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है। क्या तुम नहीं कहते कि अब कटनी के चार महीने रह गये हैं? परन्तु मैं तुम लोगों से कहता हूँ-आँखें उठा कर खेतों को देखो। वे कटनी के लिए पक चुके हैं। अब तक लुनने वाला मजदूरी पाता और अंनत जीवन के लिए फसल जमा करता है, जिससे बोने वाला और लुनने वाला, दोनों मिल कर आनंद मनायें, क्योंकि यहाँ यह कहावत ठीक उतरती है- एक बोता है और दूसरा लुनता है। मैंने तुम लोगों को वह खेत लुनने भेजा है, जिस में तुमने परिश्रम नहीं किया -दूसरों ने परिश्रम किया है और तुम्हें उनके परिश्रम का फल मिल रहा है।' उस स्त्री ने कहा था- उन्होंने मुझे वह सब, जो मैंने किया है, बता दिया है। इस कारण उस नगर में बहुत से समारिया ने येसु में विश्वास किया । इसलिए जब वे उनके पास आये, तो उन्होंने अनुरोध किया कि, 'आप हमारे यहाँ रहिए'। वह दो दिन वहीँ रहे। बहुत से अन्य लोगों ने उनका उपदेश सुन कर उन में विश्वास किया और उस स्त्री से कहा, 'अब हम तुम्हारे कहने के कारण ही विश्वास नहीं करते। हमने स्वयं उन्हें सुन लिया है और हम जान गये कि वह सचमुच संसार के मुक्तिदाता हैं'।

प्रभु का सुसमाचार ।

धर्मसार - पु० मैं स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टिकर्ता

सबः सर्वशक्तिमान पिता ईश्वर, और उसके इकलौते पुत्र अपने प्रभु येसु ख्रीस्त में विश्वास करता (करती हूँ, ('जो पवित्र आत्मा के द्वारा ... से जन्मा' शब्दों तक एवं अंतर्विष्ट सब लोग नतमस्तक होते हैं।) जो पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया, कुँवारी मरियम से जन्मा, पाँतुस पिलातुस के समय दुःख भोगा, क्रूस पर चढ़ाया गया, मर गया और दफनाया गया; वह अधोलोक में उतरा और तीसरे दिन मृतकों में से फिर जी उठा; वह स्वर्ग में आरोहित हुआ और सर्वशक्तिमान् पिता ईश्वर के दाहिने विराजमान है; वहाँ से वह जीवितों और मृतकों का न्याय करने आएगा। मैं पवित्र आत्मा, पवित्र काथलिक कलीसिया, धर्मियों की सहभागिता, पापों की क्षमा, देह का पुनरूत्थान और अनंत जीवन में विश्वास करता ( करती हूँ। आमेन।

विश्वासियों के निवेदन

पुः प्रिय भाइयो और बहनों, हम चलीसे काल में है और यह ईश्वर को जानने और उसके पास लौटने का समय है। अतः हम अन्य जरूरतों के साथ-साथ ऐसा कर पाने के लिए प्रार्थना करें और कहें-

सब: हे पिता हमारी प्रार्थना सुन ।

1. संत पापा फ्रांसिस, धर्माध्यक्षों, पुरोहितों और धर्मसंघियों के लिए प्रार्थना करें कि वे ईश्वर के ज्ञान से भर जायें और इस ज्ञान को अन्य लोगों में भी बाँट सकें जिससे अधिक से अधिक लोग उसके पास आ सकें। इसके लिए प्रार्थना करें।

2. पूरे मानव जाति के लिए प्रार्थना करें कि वे ईश्वर के पास आयें, उन्हें जानें और सच्चे मन परिवर्तन द्वारा उसके मुक्ति के सहभागी हो सकें। इसके लिए निवेदन करें।

3. हम सभी ख्रीस्तीय विश्वासियों के लिए प्रार्थना करें कि वे चालीसे काल के निर्देशों का पालन पूरे मन दिल से सही अर्थ में कर पायें और उन्हें पास्का रहस्यों का भरपूर कृपा मिले।इसके लिए प्रार्थना करें।

4. हम इस मिस्सा बलिदान में भाग ले रहे सभी भाई बहनों के लिए प्रार्थना करें कि ईश्वर सदा हमारे साथ रहे। हमें हर प्रकार की बुराइयों और विपतियों से बचाये रखे जिससे हम सदा उनकी महिमा गा सकें। इसके लिए निवेदन करें।

5. भारत देश के सभी राजनीतिक नेताओं और अधिकारियों के लिए प्रार्थना करें जिससे वे निस्वार्थ भाव से लोगों के कल्याण और हित के लिए काम कर सकें और देश का उचित विकास हो। इसके लिए निवेदन करें।

पुः हे सर्वशक्तिमान पिता परमेश्वर, तू महान है। हम तेरे बेटे बेटियाँ कमजोर हैं। जैसा तू चाहता है वैसा हम नहीं चल पाते हैं। अतः हमें तेरी कृपा और बल की जरूरत है। तेरी आवश्यकता का एहसास करते हुए अपनी ये दीन प्रार्थनायें तुझे चढ़ाते हैं, तेरे पुत्र येसु ख्रीस्त के द्वारा आमेन।

अर्पण- प्रार्थना

हे प्रभु, हम पाप क्षमा के लिए तुझसे याचना करते हैं। इस बलिदान से प्रसन्न होकर हमें यह वर दे कि हम अपने भाई-बहनों के अपराध क्षमा करें। हमारे प्रभु खीस्त के द्वारा ।

कम्यूनियन-अग्रस्तव

प्रभु कहते हैं, “जो मेरा दिया हुआ जल पीता है, वह जल उसमें ऐसा स्रोत बन जाएगा, जो अनंत जीवन के लिए उमड़ता रहेगा । " ( योहन 4:13-14)

कम्यूनियन के बाद प्रार्थना

हे प्रभु, हमने स्वर्गिक जीवन की धरोहर प्राप्त की है और इस पृथ्वी पर स्वर्गिक रोटी से पोषित हुए हैं। इस संस्कार के प्रभाव हम भला आचरण कर सकें। यह विनय सुन ले, हमारे प्रभु खीस्त के द्वारा ।

चिन्तन

किसी चीज की जानकारी और उसके संबंध का ज्ञान हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करता है। यही बात हमारी अध्यात्मिकता में भी लागू होती है। ईश्वर को हम जितना अधिक जानते हैं और उसका ज्ञान जितना अधिक होता है उतना ही हम उसकी भक्ति करते हैं। उसको पाने और उसकी आवश्यकता महसूस करते हैं और उसके इच्छा अनुसार उसमें परिवर्तन लाकर पूर्ण संतुष्टि के साथ उसे जीते हैं। ठीक इसके विपरीत उसकी अज्ञानता हमको उतना ही उससे दूर ले जाती है। आज के पाठों द्वारा इसी वास्तविकता को हमारे समक्ष रखा गया और हमें ललकारा गया है कि हम ईश्वर, सब चीज के स्रोत को जाने और उससे जुड़कर जीवन में मिले वरदानों से संतुष्ट होकर सच्चा आनंद पायें।

आज का पहला पाठ निर्गमन ग्रन्थ से पढ़ा गया। इसका संर्दभ है इस्रायली लोग ईश्वर की कृपा और सामर्थ्य से मूसा के निर्देशन में मिस्र देश की गुलामी से निकल कर प्रतिज्ञात देश की ओर आगे बढ़ रहे हैं। ईश्वर अपने बाहुबल से उनकी कई कठिन समस्याओं को दूर किया । जैसे- लाल सागर का सूखे पाँव पार कराना, मन्ना के रूप में रोज दिन भोजन देना आदि । आज के पाठ में उन्हीं इस्राएलियों को इसी क्रम में प्यास लगती है और ईश्वर पर भरोसा रखने के बदले वे मूसा के प्रति और ईश्वर के प्रति भुनभुनाते हैं। ये भुनभुनाहट क्यों ? क्योंकि वे ईश्वर को नहीं जान पाये थे। ईश्वर विभिन्न रूपों में उनके बीच अपने को प्रकट किया, कभी बादल के रूप में, तो कभी अग्नि के रूप में पर वे उसकी महानता, प्रेम, उपस्थिति और उनके द्वारा किये गये महान कार्यों को भी नहीं समझ पाये। ईश्वर के हर चमत्कारिक कार्यों का एक ही मकसद था ताकि उन चमत्कारों द्वारा वे उनको जाने और उसके प्रति विश्वास में दृढ़ होकर समर्पित हों। पर ऐसा नहीं हुआ। ईश्वर को नहीं जानने के कारण वे उनके विरूद्ध गये। फिर भी ईश्वर उनकी माँग को सुने और चट्टान से पानी निकाला और उनकी प्यास बुझायी । हमारी क्या स्थिति है? क्या हम उन इस्राएलियों से बेहतर हैं? हमारे लिए भी ईश्वर न जाने कितने वरदान और कृपायें दी हैं। अपने एकलौते पुत्र द्वारा खुद अपने को हमारे लिए प्रकट किया और हमें क्या करना है क्या नहीं करना है उसे बताया है। पर क्या हम उसे जानते, समझते और उसकी अवश्यकता अपने जीवन में महसूस करते हैं?

आज का दूसरा पाठ रोमियों के नाम पत्र से पढ़ा गया। इसमें भी मानवजाति के प्रति ईश्वर का प्रेम और उनकी महानता को बताया गया है। ईश्वर अपना प्रेम अपने बेटे येसु खीस्त द्वारा प्रगट किया है। हम सब पापी और असहाय थे। हमारे पास अपने बलबूते मुक्ति पाने का कोई माध्यम नहीं था। पर ईश्वर अपनी दया और उदारता से अपने बेटे को इस दुनिया में भेजा, जो हमारे पापों को अपने उपर लिया और हमारी मुक्ति के लिए स्वयं क्रूस पर बलिदान हो गये। हमारा सामान्य अनुभव में हम पाते हैं कि भले लोगों के लिए हर जन मदद करने के लिए तैयार होते हैं पर पापी या दुष्ट के लिए कोई तैयार नहीं होता। हम पापी थे और हमारे हित के लिए येसु ख्रीस्त इस दुनिया में आये, दुःख सहे और मर गये। ये कितना बड़ा ईश्वरीय दया है। पर क्या इस बात का एहसास कर हम पापों से दूर रहने आ पवित्रता का जीवन जीने का प्रयास करते हैं?

आज के सुसमाचार में एक समारी स्त्री को पाते हैं। येसु ख्रीस्त के साथ उनका बातचित होती है और बातचित के क्रम में वह येसु ख्रीस्त को जानती है। अपने पापों का एहसास करती है। उनको स्वीकार कर अपने को नया बनाती है और येसु की महानता का प्रचारक बनती है। वह लोगों को उसके बारे में बताती है और लोग उनसे मिलने आते हैं और वे भी येसु ख्रीस्त को जानते हैं और उनका भी येसु पर विश्वास बढ़ने लगता है। वे लोग उस समारी स्त्री से कहते भी हैं कि वे उनके कहने पर नहीं पर स्वयं वे उनसे मिले, उनके उपदेशों को सुने और जान गये कि येसु ही सचमुच संसार के मुक्तिदाता है। ये घटना हमारे लिए क्या संदेश देता है? हमें भी समारी स्त्री के समान नम्रतापूर्वक येसु के पास आना होगा। उसके साथ बातचित करना होगा । हम जितना अधिक उसको जानेंगे उतना हमें हमारे पापों का एहसास होगा। हममें पश्चाताप की भावना जागेगी। हम सच्चा पाप स्वीकार पायेंगे और अपने को नया बना कर नये ढंग से जीवन जीना संभव होगा और हम भी अन्य समारियों की तरह कह सकेंगे, हम किसी के बताने से नहीं पर, स्वयं येसु को पाकर उसे जान गये कि वह सच्चा ईश्वर है जिसमें दुनिया की मुक्ति संभव है। बाईबल में इस तरह के कई उदाहरण मिलते हैं, जैसे नाकेदार जकेयुस, संत पौलुस, जिन्होंने ने येसु को जाना। अपने जीवन में स्थान दिया, उनका जीवन बदल गया और वे उसके मुक्ति के सहभागी हुए। क्या हम येसु को अपने जीवन में स्थान देकर उसके मुक्ति का सहभागी होना चाहते है ? ये चालीसे काल का समय इन्हीं बातों पर चिन्तन करने और इसके लिए उचित कदम उठाने की चुनौती देती है। आमेन ।

 

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