Ranchi Archdiocese
Menu
  • Home
  • About Us
    • Archdiocese At A Glance
    • Formal Prelates Of Ranchi
    • History
    • Vision & Mission
    • Archdiocesan Priests in Heaven(RIP)
  • Our Parishes
  • Directories
    • Archdiocesan Curia
    • Commissions & Secretaries
    • Institutes
    • Archdiocesan Priests
    • Archdiocesan Seminarians
    • Consecrated men & women
    • Major Superior
  • Church in Jharkhand
  • Useful Links
  • Resources
  • Media
    • Photo
    • Video
    • Media
  • Contact Us

NEWS AND EVENTS

  • Home
  • NEWS AND EVENTS

राख:ईसाईयों के लिये राख का महत्व

ईसाई लोग राखबुध के दिन अपने  माथे पर  राख लगाकर ईस्टर रविवार के पूर्व चालीसा काल की शुरुआत करता है।  उस बुधवार को वे 'राखबुध'  भी कहते हैं। राखबुध के दिन गिरजाघरों में विषय प्रार्थना की जाती है, उसी दौरान उनके सिर या माथे पर राख से क्रूस का चिन्ह बनाया जाता है। इस दिन वे विशेष प्रार्थना, उपवास और परहेज करते हैं। इसी दिन से  चालीसा प्राम्भ हो जाता है इसे लेंट भी  कहते हैं।  यह 40 या उससे अधिक दिनों का समयावधि होता है। यह काल  ईसाई धर्मावलंबियों के लिये विशेष समय होता है। राखबुध से लेकर पूरे चालीस दिनों तक लोग प्रार्थना, त्याग, तपस्या, पुण्य काम, परोपकार, बाईबल पठन, पापों के प्रति पश्चाताप  और अपने जीवन का मूल्यांकन करते हुए येसु  के प्रेम, बलिदान, दुख, मृत्य के रहस्यों का चिंतन करते है। 

'राख' का अनेकों अर्थ या महत्व हो सकता है। लकड़ी या पत्ते की राख मिट्टी की उर्वरकता को बढ़ाने में सार्थक होता है। पौराणिक काल में इसे औसधि के रूप में प्रयोग किया जाता था। ग्रामीण आंचलों में लोग राख का प्रयोग कपड़ा साफ करने के लिये भी करते थे। विभिन्न धर्मों में इसका धार्मिक महत्व भी हैं। यह शरीर की क्षणभंगुरता  व नश्वरता को प्रकट करता है। साधु संत लोग स्नान के बाद राख लगाते थे यह अपने को याद दिलाने के लिये कि यह शरीर एक दिन राख बन जायेगा। शरीर तथा संसार से विरक्त रोह। होली का त्योहार बुराइयों को भष्म करने तथा शांति पाने का साधन माना जाता है।

 ईसाइयों के लिये भी  राख अहम मायने रखता है इसे हम धार्मिक मूल्यों के आधार पर जानने का प्रयास करे। कैथोलिक कलीसिया में और अन्य कुछ कलीसिया में भी बुधवार के दिन लोग गिरिजा घरों में इक्कट्ठे होते हैं, विशेष प्रार्थना या मिस्सा बलिदान में भाग लेकर पुरोहित या अधिकृत व्यक्ति द्वारा सिर पर राख क्रूस अंकित किया जाता है। क्रूस  अंकित करते हुए  पुरोहित कहता है - ऐ मनुष्य याद रख तू मिट्टी है और मिट्टी में मिल जायेगा। या - पश्चाताप करो और सुसमाचार में विशवास करो। यह राख पिछले वर्ष के पाम संडे पर आशीषित खजूर के पत्तों को भस्म कर बनाया जाता है उस पर आशीष प्रार्थना की जाती है ।
 
 बाईबल के पुराने व्यवस्थान में हम पाते है। तपस्य तथा माथे के राख से यूहदियों के जीवन बच जाता है। एस्तेर 4:17 एस्तेर बाबुल के राजा के अनेकों रानियों में एक थीं। एस्तेर एक यहूदी थी। इस्राएल से लायी गयी एक गुलामी महिला थी। उसके ुसंदर चरित्र एवं सौंदर्य के कारण राजा ने उसे अपना पत्नी बनाया। एस्तेर के लिये जब पता चलता है कि राज दरबार का एक मंत्री यहूदियों को मारने का सडयंत्र रच रहा है।  जब रानी एस्तेर को पता चला तो उसके अंदर बहुत दुःख हुआ। वह मृत्यु के भय से प्रभु की शरण गयी। उन्होंने राजकीय वस्त्र उतारकर शोक के वस्त्र धारण किये। बहुमूल्य विलेपन के बदले अपने माथे पर राख डाला, घोर तपस्य द्वारा अपने शरीर को तपाया। तीन दिनों के कठोर तपस्या के पश्चात राजा के पास राजकीय पोषक के साथ आती है राजा का मन परिवर्तित हो जाता है। बाद में सडयंत्र रचने वाला मंत्री मारा जाता है। एस्तेर के तपस्य से बाबुल के गुलामी में रह रहे यहूदी मृत्यु से बच जाते हैं।

राख प्रयाश्चित का प्रतीक है। जब नबी दानिएल के लिये पता चला कि कुछ वर्षों के बाद येरूसलेम नगर नष्ट किया जाएगा, पवित्र मंदिर विनाश किया जाएगा तो नबी दानिएल के दिल में अपने नगर एवं लोगों के प्रति दया उमड़ती है। वह माथे पर राख डालकर उपवास व प्रार्थना करता है। वह अपने यहूदीलोगों तथा पूर्वजों के पापों के लिए प्रायश्चित करता है। 
राख  तथा तपस्या विपत्ति व विनाश से बचाता है।
योना का ग्रंथ अध्यय 3 में पाते हैं, असुर देश के नीनवे शहर में  योना नबी घुम-घुमकर कहता है आज से ठीक चालीस दिन बाद ईश्वर इस शहर में विनाश लाने वाला है। इसे विरोधियों के हाथों में दे देगा। इसलिए पश्चाताप करो। नीनवे के राजा ने यह खबर सुना उन्होंने अपना राज वस्त्र उतारकर टाट ओढ़ लिया और राख पर बैठ गया। वह जानवर व लोगों को आदेश देता है कि वे प्रायश्चित करें। जब ईश्वर देखता है कि नीनवे के सभी प्राणी व लोग प्रायश्चित कर रहे हैं तो ईश्वर उन्हे विनाश से बचा लेता है।
पाप से दूर होने  और पश्चाताप का प्रतीक है। 
नये व्यवस्थान में मति का सुसमाचार अध्यय 11:20 में  येसु ने उन लोगों को धिक्कारा जो उनके वचन को सुना  तथा चमत्कार देखा फिर भी पश्चाताप नहीं किया। यही काम अगर  तिरुस और सिदोन में किया होता वे कब के टाट ओढ़ते और राख लगा कर प्रायश्चित करते।

राख जीवन की क्षणभंगुरता को प्रस्तुत करता है। यह शरीर टिकाऊ नहीं है। अ्ययूब का ग्रंथ अध्यय 1: 21 मैं नंगा ही मां के गर्भ से आया और नंगा ही इस धरती के गर्भ में जाऊँगा। हम क्या ले आये और इस संसार से क्या ले जायंेगे। मनुष्य मात्र सांस है। बाईबल में कहा गया है ईश्वर ने मनुष्य को मिट्टी से बनाया। ईश्वर ने उसमें प्राण वायु फंूका। स्तोत्र ग्रंथ  अध्यय 90:3 तू मनुष्य को फिर मिट्टी में मिलाते हुए काता है, आदम की संतान लौट जा।
 
चालीसा काल  त्याग, तपस्या, प्रार्थना तथा पश्चाताप का समय है। इसकी शुरुआत माथे पर राख लगा कर किया जाता  है।  चालीसा काल आपके लिए पुण्य समय हो यही कामना करता हूँ।

लेख: फादर प्रफुल बड़ा
        संत अल्बर्टस कॉलेज राँची

Contact Us
  •  ⛪ Archbishop's House,
           P.B. 5, Dr. Camil Bulcke Path,
           Opposite to Indian Overseas Bank
            Ranchi, Jharkhand 834001
  •  📱 +91 90064 37066 
  •  ✉️ secretaryranchi@gmail.com

 

 

How To Reach
Explore
  • Home
  • About
  • Directories
  • Useful Links
  • Church In Jharkhand
  • Resources
  • Media
Follow us on

Copyright 2025 All rights reserved Ranchi Archdiocese || Powered By :: Bit-7 Informatics